मुर्गे ने अख़बार निकला,
नाम 'कुकड़ू कूँ रखा निराला.
अक्षर उसमे रंग-रंगीले,
मोर किरण जैसे चमकीले,
कार्टून में बन्दर मामा,
पहने धारीदार पजामा।
कौवे की करतूत छपी थी ,
बात नहीं यह झूठ छपी थी।
हो गया कौवा कैसे काला,
मुर्गे ने अख़बार निकला।
यहाँ सभी थे जैसे अपने,
सबके अपने सुन्दर सपने,
पंखों में भर गयी उमंगें,
बिना डोर की उडी पतंगे,
बने सभी मोती की माला,
मुर्गे ने अख़बार निकला।।।।
Wednesday, March 3, 2010
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